Saturday, September 3, 2016

कृष्ण, जीसस, बुद्ध सब अनूठे हैं! तुम सबका अद्वितीय आनंद लो

कुछ ऐसा विधेयक लाओ कि सारे मंदिर, सारी मस्जिदें, सारे गुरूद्वारे सबके हों -- जो जहां चाहे, जहां मौज हो। और क्यों न ऐसा हो कि एक दिन मंदिर और एक दिन मस्जिद और एक दिन गुरुद्वारा! सबके स्वाद क्यों न लिए जाएं?

तुम्हारे जीवन में इतनी उदासी न रहेगी, इतनी धूल न रहेगी, अगर कभी-कभी कुरान का भी स्वाद लो और गीता का भी स्वाद लो और उपनिषद् का भी स्वाद लो और बाइबिल का भी स्वाद लो। तुम्हारी जिंदगी में ज्यादा पहलू होंगे। जैसे कोई हीरे को निखरता है तो पहलू धरता है, अनेक पहलू बनाता है हीरे में। जितने ज्यादा पहलू होते हैं, हीरे में उतनी चमक आती है।

एक ऐसी दुनिया चाहिए जहां हर आदमी को मनुष्य की पूरी वसीयत पूरी की पूरी उपलब्ध हो!

यह बात बड़ी दरिद्रता की है कि तुम हिन्दू हो, इसलिए जीसस के प्यारे वचन तुम्हारे प्राणों में कभी न गूंजेंगे! तुम वंचित रह जाओगे! और जीसस के वचन ऐसे हैं कि जो उनसे वंचित रह गया, वह कुछ कम रह गया। कुछ ज्यादा हो सकता था, एकाध और कली खिल सकती थी, एकाध और सुगंध उठ सकती थी, रोशनी थोड़ी और सघन हो सकती थी! 

जो आदमी जीसस से अपरिचित है, उस आदमी में कुछ कमी रह गई, उसकी आत्मा के किसी कोने में अँधेरा रह ही जाएगा, निश्चित रह जायेगा -- क्योंकि कृष्ण के बहुत प्यारे वचन हैं, मगर जीसस अनूठे हैं, अद्वितीय हैं! 

कृष्ण कृष्ण हैं, जीसस जीसस हैं, बुद्ध बुद्ध हैं! सब अनूठे हैं! तुम सबका अद्वितीय आनंद लो।

धर्म आना चाहिए पृथ्वी पर -- और ये सब धाराएँ धर्म की धाराएँ हैं, और ये सारी  धाराएँ मिलकर धर्म की गंगा बनतीं हैं! 

                                             
                                        
            

        🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹

No comments:

Post a Comment