परमात्मा ऐसा थोड़े ही है कि कल मिलेगा। आख खोलो तो अभी मिल जाए। आख खोलो तो अभी है। तुम कहते हो : नहीं, अभी नहीं। अभी तो मुझे और हजार काम हैं। अभी परमात्मा मिल गया तो मैं और अपने हजार काम कैसे करूंगा? नहीं, अभी नहीं। इतना ही आशीर्वाद दें कि जब मुझे जरूरत हो तब मिल जाए।
तुम पहले तो धर्म लेते हो अतीत से उधार और परमात्मा को सरकाते हो भविष्य में। तुम्हारे मन की तरकीब को ठीक से समझ लेना। धर्म तुम्हारा होता है अतीत का और परमात्मा सदा भविष्य में। और वर्तमान को तुम बचा लेते हो संसार के लिए। इसलिए धर्म तुम लेते हो बुद्ध से, महावीर से, कृष्ण से, क्राइस्ट से। जब कृष्ण और बुद्ध जिंदा थे, तब तुमने उनसे धर्म नहीं लिया, क्योंकि तब वे वर्तमान थे। तब तुम धर्म ले रहे थे वेद से, उपनिषद से। और जब वेदों के ऋषि जिंदा थे तब तुम उनसे धर्म नहीं ले रहे थे। तुम्हारा बड़ा मजा है। तुम हमेशा मुर्दा गुरु से धर्म लेते हो, क्योंकि मुर्दा गुरु का धर्म तुम्हें जरा भी अड़चन नहीं देता। कांटे नहीं चुभते उससे, फूलों की सेज मिल जाती है। सांत्वना मिलती है, सत्य नहीं मिलता।
और तुम सत्य चाहते नहीं, तुम सांत्वना चाहते हो।
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