Saturday, May 16, 2015

Jocks चंदूलाल मारवाड़ी

आखिरी सवाल: भगवान, मेरे पिताजी आप पर बहुत नाराज हैं। आपके विचारों से तो सहमत हैं। यहां तक कि संन्यास भी लेना चाहते हैं। नाराजगी का कारण है, आपके चंदूलाल मारवाड़ी के लतीफे। मेरे पिताजी मारवाड़ी हैं और उनका नाम चंदूलाल है!

विजय!
यह तो बड़ा तुमने अच्छा किया, याद दिला दी। यह आठ-दस दिन से मैं चंदूलाल को बिलकुल भूला ही हुआ था। और तुम्हारे पिताजी हैं, सो तो स्वभावतः अब कभी नहीं भूलूंगा। तुम्हारे पिताजी के लिए कुछ लतीफे।

न्यायाधीश ने अदालत के कठघरे में खड़े सेठ चंदूलाल से कहा, इतनी छोटी सी बात के आधार पर, सेठ, तलाक नहीं दिया जा सकता। क्या तुम्हारे पास कोई ठोस प्रमाण भी हैं जिनसे पता चले कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारे प्रति वफादार नहीं?
चंदूलाल ने कहा, एक नहीं हजारों प्रमाण हैं, माई लार्ड! कल की ही रात की बात है। यह रात को तीन घंटे गायब रही। और पूछने पर सफाई पेश करने लगी कि मैं अपनी सहेली गुलजान के साथ सिनेमा देखने गई थी।
जज ने पूछा, मगर तुम्हें यह कैसे पता चला कि तुम्हारी पत्नी झूठ बोल रही थी?
चंदूलाल ने कहा, क्योंकि कल रात को मैं तो खुद ही गुलजान के साथ सिनेमा देखने गया था! अब आप स्वयं सोचिए कि यह औरत मेरे साथ सरासर धोखा कर रही है या नहीं!
तुम्हारे पिताजी हैं तो मैं क्या करूं विजय, आदमी वे गजब के हैं!

फजलू अपने साथ पढ़ने वाली रीता नामक एक लड़की पर फिदा हो गया। एक दिन यह पता लगा कर कि वह किस मोहल्ले में रहती है, फजलू वहां जा पहुंचा। अब मुश्किल यह थी कि उसका घर कैसे ढूंढा जाए! फजलू ने सामने से चले आ रहे एक वृद्ध सज्जन से पूछा, दादा जी, क्या आपको पता है कि रीता कहां रहती है? मैं उसका भाई हूं। लेकिन पांच-छह सालों के बाद इस शहर में आया हूं। अतः पहचान नहीं पा रहा हूं कि उसका मकान कौन सा है। सब बदला-बदला नजर आ रहा है!
उस बूढ़े आदमी ने फजलू के कंधे पर हाथ रख कर कहा, तुमसे मिल कर बड़ी प्रसन्नता हुई बेटे। मैं रीता का बाप सेठ चंदूलाल मारवाड़ी हूं!
एक मोटा व्यक्ति समुद्रतट पर बैठा सामने की ओर देख रहा था, जहां जवान लड़कियां अल्प वस्त्रों में व्यायाम कर रही थीं। पास से गुजरते हुए दूसरे मोटे व्यक्ति ने कहा, आपका क्या खयाल है सेठ चंदूलाल! क्या इससे वजन घटता है?
चंदूलाल ने जवाब दिया, क्यों नहीं! इसी दृश्य को देखने के लिए तो मैं रोज सुबह तीन मील चल कर आता हूं! अरे, वजन क्यों नहीं घटेगा? घटता है।

सेठ चंदूलाल मारवाड़ी ने अपने दोस्त ढब्बूजी को बताया कि मेरी पत्नी कपड़ों के पीछे दीवानी है। जब देखो तब कपड़ों की मांग करती रहती है। सुबह से शाम तक एक ही रट लगाए रखती है कि नए कपड़े चाहिए। मैं तो यह सुन-सुन कर घनचक्कर हुआ जा रहा हूं। शादी को बीस साल हो गए, एक दिन ऐसा नहीं होता, जब वह कपड़ों की रट न लगाती हो। बस कपड़े! कपड़े! कपड़े!
ढब्बूजी बोले, आश्चर्य की बात है! आखिर वह इतने कपड़ों का करती क्या है?
चंदूलाल ने कहा, मुझे क्या पता! मैंने तो आज तक एक भी कपड़ा खरीद कर दिया नहीं। अरे, जब दहेज में मिले वस्त्रों में सब आराम से चल रहा है, तो नए कपड़ों में भला क्यों पैसा व्यर्थ किया जाए! कल फिर मुझसे कहने लगी कि अब तो कपड़े नाम-मात्र को ही बचे हैं। पड़ोस के छोकरे खिड़की में से झांक-झांक कर तमाशा देखते हैं! अब तो कुछ करो, मोहल्ले भर में हंसी होती है!
ढब्बूजी ने पूछा, तो फिर तुमने कुछ किया?
सेठ चंदूलाल बोले, और भला क्या करता! यही किया कि एक पुरानी साड़ी का पर्दा बना कर खिड़की पर लटका दिया।
पहुंचे हुए व्यक्ति हैं तुम्हारे पिताजी, विजय!

नसरुद्दीन आफिस गया था और फजलू स्कूल। गुलजान घर में अकेली थी। दोपहर को नसरुद्दीन के दोस्त सेठ चंदूलाल आए और धीरे-धीरे बातों ही बातों में एक हजार रुपए के बदले में गुलजान को अपना स्त्रीत्व बेचने के लिए फुसलाने लगे। कुछ समय तक आनाकानी करने के बाद गुलजान तैयार हो गई। चंदूलाल ने उसे नगद एक हजार रुपयों का बंडल थमा दिया।
शाम को नसरुद्दीन ने आफिस से आते ही पूछा, अरे, आज क्या मेरा दोस्त चंदूलाल आया था? उसकी छड़ी वहां कोने में टिकी है। लगता है छड़ी भूल गया!
गुलजान को तो पसीना छूट गया। मगर अब क्या कर सकती थी, कोने में छड़ी टिकी तो थी। बोली, हां, आज दोपहर को आया था।
मुल्ला ने कहा, गजब हो गया। मारवाड़ी से ऐसी आशा न थी। क्या वह पूरे एक हजार रुपए दे गया?
यह सुन कर तो गुलजान पर जैसे बिजली गिर पड़ी हो। घबड़ाहट में उसके मुंह से निकल गया, हां, पूरे एक हजार।
नसरुद्दीन ने खुशी से उछलते हुए कहा, मान गया मैं भी कि मारवाड़ी भी वायदे के पक्के होते हैं। पिछले महीने उसने एक हजार रुपए उधार लिए थे और वचन दिया था कि ठीक एक माह में आज की ही तारीख को लौटा दूंगा!

तुम घबड़ाओ मत विजय, अपने पिताजी को घर लौट कर कहना कि मैं तो चंदूलाल के लतीफे कहना बंद नहीं कर सकता, एक तरकीब है आसान। वे आ जाएं और संन्यासी हो हो जाएं। उनका नाम बदल दूंगा।

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