मनुष्य के दुख का एक कारण यह भी है कि वह किसी भी चीज को, फिर वह इंसान हो या परिस्थिति, ज्यों का त्यों नहीं स्वीकारता। वह उसमें अपनी सोच अवश्य जोड़ देता है, जिसके कारण वह उसका हिस्सा बनने से चूक जाता है और दुखी हो जाता है। ओशो कहते हैं कि जो हो रहा है, उसे होने देना चाहिए, कोई अवरोध नहीं बनना चाहिए।
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