मनुष्य सदा तनाव में रहता है। कभी ईर्ष्या से तो कभी क्रोध से भरा ही रहता है। उसमें भटकने और आक्रामक होने की संभावना हमेशा छुपी रहती है। वह चाहकर भी आनंदित और सुखी नहीं रह पाता। ओशो कहते हैं कि मनुष्य एक ऊर्जा है। हम यदि उस ऊर्जा को दबाएंगे तो वह कहीं न कहीं किसी और विराट रूप में प्रकट होगी ही।
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