प्रेम अंकुरित होगा, तो घृणा भी साथ
—साथ खड़ी है। अब थोड़े सावधान
रहना। पहले तो जब
प्रेम अंकुरित न हुआ था, तब तो तुम घृणा
को ही प्रेम
समझकर जीए थे। अब जब प्रेम अंकुरित हुआ है,
तभी तुम्हें
पहली दफे बोध भी आया है कि घृणा
क्या है। और अब
तुम गिरोगे, तो बहुत पीड़ा होगी।
अहोभाव की थोड़ी बूंदा—बांदी
होगी, तो
शिकायत भी बढ़ने लगेगी। क्योंकि जब
परमात्मा से
मिलने लगेगा, तो तुम और भी मांगने की
आकांक्षा से
भर जाओगे। आज मिलेगा, तो अहोभाव।
कल नहीं
मिलेगा, तो शिकायत शुरू हो जाएगी।
अहोभाव के
साथ—साथ शिकायत की खाई भी
जुड़ी है। सावधान
रहना। अहोभाव को बढ़ने देना और
शिकायत से
सावधान रहना। शिकायत तो बढ़ेगी,
लेकिन तुम उस
खाई में गिरना मत।
खाई के होने का मतलब यह नहीं है कि
गिरना जरूरी है।
शिखर ऊंचा होता जाता है, खाई गहरी
होती जाती
है, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम्हें खाई में
गिरना ही
पड़ेगा। सिर्फ सावधानी बढ़ानी पड़ेगी।
भिखमंगा
निश्चित सोता है। सम्राट नहीं सो
सकता। भिखमंगे
के पास कुछ चोरी जाने को नहीं है।
सम्राट के पास
बहुत कुछ है। सम्राट को सावधान होकर
सोना पड़ेगा।
थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी। तो ही
बचा पाएगा
जो संपदा है, अन्यथा खो जाएगी।
जैसे—जैसे तुम गहरे उतरोगे, वैसे—वैसे तुम्हारी
संपदा
बढ़ती है। उसके खोने का डर भी बढ़ता है;
खोने की
संभावना बढ़ती है।
उसके चोरी जाने का, लुट जाने का अवसर
आएगा।
जरूरी नहीं है कि तुम उसे लुट जाने दो। तुम
उसे बचाना,
तुम सावधान रहना। अड़चन इसलिए आती है
कि तुम तो
सोचते हो कि एक दफा ध्यान उपलब्ध हो
गया,
समाधि उपलब्ध हो गई, तो यह
सावधानी, जागरूकता,
ये सब झंझटें मिटी। फिर निश्चित चादर
ओढ़कर सोएंगे।
इस भूल में मत पड़ना। निश्चित तो हो
जाओगे, लेकिन
असावधान होने की सुविधा कभी भी
नहीं है।
सावधान तो रहना ही पड़ेगा।
सावधानी को स्वभाव
बना लेना है। वह इतनी तुम्हारी जीवन—
दशा हो जाए
कि तुम्हें करना भी न पड़े, वह होती रहे।
सावधान
होना तुम्हारा स्वभाव—सहज प्रक्रिया
हो जाए।
नहीं तो यह अड़चन आएगी। मुझे सुनोगे,
समझ बढ़ेगी,
समझ के साथ—साथ अहंकार भी बढेगा
कि हम समझने
लगे। उससे बचना। उस फंदे में मत पड़ना। पड़े,
समझ कम हो
जाएगी।
बड़ा सूक्ष्म खेल है, बारीक जगत है, नाजुक
यात्रा है।
स्वभावत:, जब समझ आती है, तो मन कहता
है, समझ गए।
तुमने कहा, समझ गए, कि गई समझ, गिरे
खाई में।
क्योंकि समझ गए, यह तो। अहंकार हो
गया। अहंकार
नासमझी का हिस्सा है। जान लिया,
अकड़ आ गई;
अकड़ तो अज्ञान का हिस्सा है। अगर
अकड़ आ गई, तो
जानना उसी वक्त खो गया। बस, तुम्हें
खयाल रह गया
जानने का। जानना खो गया।
ज्ञान तो निरअहंकार है। जहां अहंकार है,
वहां शान
खो जाता है। इसलिए प्रतिपल होश
रखना पड़ेगा।.
Everything starts with love, remember; love is the ultimate law. Then prayer, mercy, grace, follow of their own accord.
Monday, July 13, 2015
प्रतिपल होश
Labels:
OSHO HINDI
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