Master says...लेकिन मैं जिस सेक्स की बात कर रहा हूं, वह तीसरा तल है। वह न आज तक पूरब में पैदा हुआ है, न पश्चिम में। वह तीसरा तल है स्प्रिचुअल, वह तीसरा तल है, अध्यात्मिक। शरीर के तल पर भी एक स्थिरता है। क्योंकि शरीर जड़ है। और आत्मा के तल पर भी स्थिरता है, क्योंकि आत्मा के तल पर कोई परिवर्तन कभी होता ही नहीं। वहां सब शांत है, वहां सब सनातन है। बीच में एक तल है मन का जहां पारे की तरह तरल है मन। जरा में बदल जाता है।
पश्चिम मन के साथ प्रयोग कर रहा है इसलिए विवाह टूट रहा है। परिवार नष्ट हो रहा है। मन के साथ विवाह और परिवार खड़े नहीं रह सकते। अभी दो वर्ष में तलाक है, कल दो घंटे में तलाक हो सकता है। मन तो घंटे भर में बदल जाता है। तो पश्चिम का सारा समाज अस्त-व्यस्त हो गया है। पूरब का समाज व्यवस्थित था। लेकिन सेक्स की जो गहरी अनुभूति थी, वह पूरब को अपलब्ध नहीं हो सकी।
एक और स्थिरता है, एक और घड़ी है अध्यात्म की। उस तल पर जो पति-पत्नी एक बार मिल जाते है या दो व्यक्ति एक बार मिल जाते है। उन्हें तो ऐसा लगता है कि वे अनंत जन्मों के लिए एक हो गये। वहां फिर कोई परिवर्तन नहीं है। उस तल पर चाहिए स्थिरता। उस तल पर चाहिए अनुभव।
तो मैं जिस अनुभव की बात कर रहा हूं,जिस सेक्स की बात कहर रहा हूं। वह स्प्रिचुअल सेक्स हे। अध्यात्मिक अर्थ नियोजन करना चाहता हूं काम की वासना में। और अगर मेरी यह बात समझेंगे तो आपको पता चल जायेगा। कि मां का बेटे के प्रति जो प्रेम है, वह आध्यात्मिक काम है। वह स्प्रिचुअल सेक्स का हिस्सा है। आप कहेंगे यह तो बहुत उलटी बात है…मां को बेटे के प्रति काम का क्या संबंध?
लेकिन जैसा मैंने कहा कि पुरूष और स्त्री पति और पत्नी एक क्षण के लिए मिलते है, एक क्षण के लिए दोनों की आत्माएं एक हो जाती है। और उस घड़ी में जो उन्हें आनंद का अनुभव होता है। वही उनको बांधने वाला हो जाता है।
कभी आपने सोचा कि मां के पेट में बेटा नौ महीने तक रहता है। और मां के आस्तित्व से मिला रहता है। पति एक क्षण को मिलता है। बेटा नौ महीने के लिए होता है इक्ट्ठा होता है। इसीलिए मां का बेटे से जो गहरा संबंध है, वह पति से भी कभी नहीं होता। हो भी नहीं सकता। पति एक क्षण के लिए मिलता है आस्तित्व के तल पर, जहां एग्ज़िसटैंस है, जहां बीइंग है, वहां एक क्षण को मिलता है, फिर बिछुड़ जाता है। एक क्षण को करीब आते है ओर फिर कोसों का फासला शुरू हो जाता है।
लेकिन बेटा नौ महीने तक मां की सांस से सांस लेता है। मां के ह्रदय से धड़कता है। मां के खून, मां के प्राण से प्राण, उसका अपना कोई आस्तित्व नहीं होता है। वह मां का एक हिस्सा होता है। इसीलिए स्त्री मां बने बिना कभी भी पूरी तरह तृप्त नहीं हो पाती। कोई पति स्त्री को कभी तृप्त नहीं कर सकता। जो उसका बेटा उसे कर देता है। कोई पति कभी उतना गहरा कन्टेंटमेंट उसे नहीं दे पाता जितना उसका बेटा उसे दे पाता है।
स्त्री मां बने बिना पूरी नहीं हो पाती। उसके व्यक्तित्व का पूरा निखार और पूरा सौंदर्य उसके मां बनने पर प्रकट होता है। उससे उसके बेटे के आत्मिक संबंध बहुत गहरे होते है।
और इसीलिए आप यह भी समझ लें कि जैसे ही स्त्री मां बन जाती है। उसकी सेक्स में रूचि कम हो जाती है। यह कभी आपने ख्याल किया है। जैसे ही स्त्री मां बन जाती है, सेक्स के प्रति रूचि कम हो जाती है। फिर सेक्स में उसे उतना रस नहीं मालूम पड़ता। उसने एक और गहरा रस ले लिया है। मातृत्व का। वह एक प्राण के साथ और नौ महीने तक इकट्ठी जी ली है। अब उसे सेक्स में रस नहीं रह जाता है।
अकसर पति हैरान होते है। पिता बनने से पति में कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मां बनने से स्त्री में बुनियादी फर्क पड़ जाता है। पिता बनने से पति में कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि पिता कोई बहुत गहरा संबंध नहीं है। जो नया व्यक्ति पैदा होता है उससे पिता का कोई गहरा संबंध नहीं है।पिता बिलकुल सामाजिक व्यवस्था है, सोशल इंस्टीटयूशन है।
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