Master says....कभी आपने देखा होगा, कोई आदमी एक मशाल हाथ में ले ले और जोर से घुमाने लगे, तो एक फायर सर्किल बन जाता है, एक अग्नि—वृत्त बन जाता है। दिखाई पड़ने लगता है कि आग का एक गोल घेरा है। गोल घेरा कहीं भी नहीं है, सिर्फ एक मशाल है जो जोर से घूम रही है। अगर आप पास जाकर गौर से देखें, तो गोल घेरा मिट जाएगा, रह जाएगी मशाल। लेकिन तेजी से घूमने की वजह से मशाल गोल घेरा मालूम होती है आग का। दूर से देखने पर लगता है कि आग का वृत्त है, गोल घेरा है। है कहीं भी नहीं, लेकिन दिखाई पड़ता है। लेकिन अगर निकट जाकर पहचानें, तो पता चलेगा कि जोर से घूमती हुई मशाल है। वृत्त झूठ है, अग्नि—वृत्त झूठ है। ऐसे ही ये भीतर अगर हम गौर से जाकर देखेंगे, तो पता चलेगा कि मैं बिलकुल ही झूठ है। तेजी से घूमती हुई चेतना के कारण मैं का भ्रम पैदा हो जाता है, जैसे तेजी से घूमती हुई मशाल के कारण वृत्त का भ्रम पैदा हो जाता है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है, जो समझ लेना चाहिए।
शायद आपको खयाल भी न हो कि हमारे जीवन के सारे भ्रम तेजी से घूमने के भ्रम हैं। दीवाल ठोस दिखाई पड़ती है, पत्थर पड़ा है पैर के नीचे, कितना साफ और ठोस है। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि ठोस पत्थर जैसी कोई चीज है ही नहीं। तब तो हम बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। क्या आपको पता है कि वैज्ञानिक मैटर के, पदार्थ के जितने ही पास गया, उतना ही पदार्थ विलीन हो गया। जब तक दूर था, तो समझता था कि पदार्थ है। और सबसे ज्यादा वैज्ञानिक ही घोषणा करता था कि पदार्थ ही सत्य है। लेकिन अब वैज्ञानिक ही कहता है कि पदार्थ तो है ही नहीं। तेजी से घूमते हुए विद्युत—क्या इतनी तेजी से घूम रहे हैं कि उनकी तेजी से घूमने की वजह से ठोसपन का भ्रम पैदा होता है। ठोसपन कहीं भी नहीं है।
जैसे बिजली का पंखा जोर से घूमता है तो उसकी तीन पंखुड़ियां दिखाई नहीं पड़ती हैं। फिर कोई गिनकर बता नहीं सकता है कि पंखुड़ियां कितनी हैं। और तेजी से घूमे, और तेजी से घूमे तो फिर हमें लगेगा कि एक टीन का गोल चक्कर घूम रहा है। फिर पंखुड़ियां दिखाई ही नहीं पड़ेगी। इतने तेजी से भी घुमाया जा सकता है उसे कि आप उसके ऊपर बैठ जाएं और आपको ऐसा पता न लगे कि पंखुड़ियां बीच से आ रही हैं, जा रही हैं। आपको ऐसा ही लगेगा कि मैं किसी ठोस चीज पर बैठा हुआ हूं। अगर इतनी तेजी से घूमे कि एक पंखुड़ी जाए, उसके पहले दूसरी पंखुड़ी आपके नीचे आ जाए, तो आपको कभी पता नहीं चलेगा कि आपके बीच —बीच में खड्डे भी आते हैं। पंखा इतनी तेजी से घूमे तो आपको पता नहीं चलेगा।
पदार्थ में उतनी ही तेजी से घूम रहे हैं उसके कण। और कण पदार्थ नहीं है, कण सिर्फ विद्युत ऊर्जा है, इलेक्ट्रिक इनर्जी है, वह तेजी से घूम रही है। घूमने की वजह से ठोसपन का भाव दे रही है। सारा पदार्थ सिर्फ तेजी से घूमती हुई ऊर्जा का फल है। दिखाई पड़ता है, है कहीं भी नहीं। ठीक ऐसे ही चित्त की ऊर्जा, इनर्जी आफ काशसनेस इतनी तेजी से घूम रही है कि मैं का भ्रम पैदा होता है।
दो भ्रम हैं जगत में, एक पदार्थ का भ्रम, मैटर का भ्रम और दूसरा मैं का भ्रम, ईगो का, अहंकार का भ्रम। ये दोनों भ्रम एकदम ही झूठे हैं, लेकिन इनके पास जाने से पता चलता है कि ये नहीं हैं। विज्ञान पदार्थ के पास गया तो पदार्थ विलीन हो गया। और धर्म मैं के पास गया, तो मैं विदा हो गया। धर्म की खोज है कि मैं नहीं है और विज्ञान की खोज है कि पदार्थ नहीं है। जितने निकट जाते हैं, उतना ही भ्रम टूट जाता है।
तो इसलिए मैं कहता हूं कि भीतर जाएं, निकट करीब से भीतर देखें, वहा कोई मैं है? और मैं नहीं कहता कि— ऐसा मान लें कि मैं नहीं हूं। अगर मान लिया तो झूठ हो जाएगा। मैं नहीं कहता हूं। मेरी बात अगर मानकर आप चल गए और आप ऐसा सोचने लगे कि मैं नहीं हूं, अहंकार झूठ है, मैं तो आत्मा हूं, मैं तो ब्रह्म हूं अहंकार नहीं है, तो आप गड़बड़ में पड़ गए। क्योंकि आप यह दोहरा रहे हैं तो फिर यह झूठ ही दोहराएंगे आप। मैं यह नहीं कहता हूं कि आप ऐसा दोहराएं। मैं यह कहता हूं कि आप भीतर जाएं, देखें, पहचानें। जो पहचानता है, देखता है, वह पाता है कि मैं नहीं हूं। फिर कौन है? जब मैं नहीं हूं कोई तो है। मेरे न होने से कोई भी नहीं है, ऐसा नहीं। क्योंकि भ्रम को जानने के लिए भी कोई तो चाहिए। भ्रम भी पैदा हो जाए, इसके लिए कोई तो चाहिए।
मैं नहीं हूं, फिर कौन है? फिर जो शेष रह जाता है, उसका अनुभव ही परमात्मा का अनुभव है। लेकिन उसका अनुभव एकदम विस्तीर्ण हो जाता है। मेरे गिरते ही तू भी गिर जाता है, वह भी गिर जाता है, फिर एक सागर ही रह जाता है चेतना का। उस स्थिति में दिखाई पड़ेगा कि परमात्मा ही है। तब तो शायद यह कहना भी गलत मालूम पड़े कि परमात्मा ही है। क्योंकि यह कहना भी पुनरुक्ति है। जब हम कहते हैं गाड इज, ईश्वर है, तो हम पुनरुक्ति कर रहे हैं। पुनरुक्ति इसलिए कर रहे हैं कि जो है, उसी का दूसरा नाम ईश्वर है। है का ही दूसरा नाम ईश्वर, है। इसलिए ईश्वर है, ऐसा एक ही चीज को दोहराना है, यह टोटॉलाजी है। एक ही बात को दोबारा कहना है। ठीक नहीं है यह बात।
ईश्वर है का क्या मतलब? हम है उस चीज को कहते हैं जो नहीं है भी हो सकती हो। हम कहते हैं, टेबिल है, क्योंकि कल टेबिल नहीं हो सकती है और कल टेबिल नहीं थी। जो चीज नहीं थी, फिर नहीं हो सकती है, उसको है कहने का कोई मतलब है। लेकिन ईश्वर न तो ऐसा है कि कभी नहीं था और न ऐसा हो सकता है कि कभी नहीं होगा। उसे है कहने का कोई भी मतलब नहीं। वह है हां, असल में जो है, उसका ही वह दूसरा नाम है। होने का ही दूसरा नाम परमात्मा है। एक्सिस्टेंस, अस्तित्व का ही दूसरा नाम परमात्मा है।
मेरी दृष्टि में, अगर हमने इस जो है, इस पर अपने परमात्मा को थोपा तो हम झूठ में उतर जाएंगे। और ध्यान रहे, परमात्मा भी अपने — अपने ट्रेड मार्क के अलग— अलग हैं। हिंदू का अपना है थोपने के लिए, मुसलमान का अपना है, ईसाई का अपना है, जैन का अपना है, बौद्ध का अपना है। सबके अपने— अपने शब्द हैं, अपने — अपने परमात्मा हैं। परमात्मा का भी बड़ा गृह उद्योग खुला हुआ है। अपने — अपने घर में परमात्मा को डाला जा सकता है। होम इंडस्ट्री है उसकी। अपने — अपने घर में ढालो, अपने — अपने परमात्मा का निर्माण करो।
और फिर ये परमात्माओं को ढालने वाले वैसे ही बाजार में लड़ते हैं, जैसे सभी अपने — अपने घर में सामान डालने वाले बाजार में, दुकानों पर लड़ते हैं। ऐसे बाजार में वे भी लड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। एक —दूसरे का परमात्मा भी भिन्न पड़ जाता है। असल में जब तक मैं हूं तब तक मैं जो भी करूंगा वह आपसे भिन्न होगा। जब तक मैं हूं, मेरा धर्म भिन्न होगा, मेरा ईश्वर भिन्न होगा, क्योंकि वे मेरे मैं के निर्माण होंगे। मैं भिन्न हूं इसलिए मेरा सब भिन्न होगा।
अगर दुनिया में ठीक—ठीक धर्म —निर्माण करने की स्वतंत्रता हो तो जितने आदमी हैं, उतने ही धर्म होंगे। इससे कम नहीं हो सकते। वह तो ठीक—ठीक स्वतंत्रता नहीं है।`
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