Master says
मैं कुछ वर्षों तक सागर में था। वहां एक मिठाईवाला है। वैसी गुजिया बनानेवाला पूरे मुल्क में कहीं भी नहीं है। उसकी गुजिया बड़ी प्रसिद्ध हैं। बहुत लोगों ने कोशिश की है वैसी गुजिया बनाने की, कोई बना नहीं सका। उसकी कला अनूठी है। उसके संबंध में कहा जाता है कि अगर रात दो बजे भी तुम्हें गुजिया चाहिए हो, तो दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं, सिर्फ उसके दरवाजे पर रुपया खनखना दो, सोया हो कितनी ही गहरी नींद में, एकदम खोलकर आ जाता है कि भाई, क्या चाहिए! दरवाजा खटखटाओ तो सुनायी नहीं पड़ता इसको। चिल्लाओ तो सुनायी नहीं पड़ता। लेकिन रुपए की आवाज वह नींद में भी सुन लेता है। गहरी से गहरी प्रसुप्ति में भी। जहां स्वप्न भी न हों, वहां भी रुपए की आवाज पहुंच जाती है।
हम वही सुन पाते हैं, जो हम खोज रहे हैं। जो परमात्मा को खोज रहा है वह परमात्मा को देख पाता है। यही है अस्तित्व। यहां तुम्हें वही दिख जाता है जो तुम खोज रहे हो। तो जिसको रुपए में संगीत मालूम पड़ता है, उसे रविशंकर के सितार में रस नहीं आएगा। वह कहेगाः “क्या फिजूल समय खराब कर रहे हो!’ शास्त्रीय संगीत में ले जाओगे तो वह कहेगा कि यह क्या आss…… . . आsssss. . . आss. . . लगा रखी है!
मुल्ला नसरुद्दीन गया था एक बार। और जब संगीतज्ञ काफी देर तक आ s s s . . . आs s ss . . करता रहा, तो मुल्ला की आंख से आंसू गिरने लगे। उसके पड़ोसी ने पूछा कि नसरुद्दीन रो रहे हो! मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम्हें शास्त्रीय संगीत से इतना रस है।
उसने कहाः शास्त्रीय संगीत! कहां का शास्त्रीय संगीत! मैं रो रहा हूं, क्योंकि यही हालत मेरे बकरे की हो गयी थी, जब वह मरा। वह आदमी मरेगा। यह कहां का शास्त्रीय संगीत हो रहा है! जल्दी से किसी डाक्टर को या वैद्य को बुलाओ। यही मेरे बकरे की हालत हो गयी थी। मुझे उसकी याद आ गई है–बकरे की–कि जब वह मरा तो करीब घंटे भर आ s s s. . . आ s s s. . . आ s s s s. . . करता रहा। मैं कुछ समझा नहीं। तब मुझे पता नहीं था। मैं तब यही समझा कि शास्त्रीय संगीत कर रहा है। तो पीछे पता चला जब मर गया। यह आदमी मरेगा।
अपनी-अपनी पकड़ है। अपनी-अपनी तौल है।
जिसने अपने को शरीर से बांध रखा है, वह बड़ा स्थूल हो जाता है। उसकी सारी पकड़ स्थूल हो जाती है। उसे जीवन में कहीं काव्य दिखाई नहीं पड़ता। वृक्षों से गुजरते हुए हवा के झोंकों में उसे संगीत सुनाई नहीं पड़ता। पक्षियों के कंठ से निकलनेवाले परमात्मा के स्वर में उसे कोई. . . कोई अर्थ नहीं है–निरर्थक, व्यर्थ का शोरगुल है।
जो शरीर से बंधकर जीता है, उससे मन के साथ जीनेवाला थोड़ा बेहतर है। मन के साथ जीनेवाला थोड़ा तो आंख ऊपर उठाता है; थोड़ा तरल होता है। अधिक से अधिक लोग संसार में मन तक पहुंच पाते हैं। जो शरीर में रहते हैं, उनके जीवन में न तो कोई संस्कृति होती है, न कोई सभ्यता होती है, न कोई अभिजात्य होता है, न कोई संगीत, न कोई गीत, न कोई नृत्य। उनके जीवन में दर्शन की कोई झलक नहीं पड़ती। छाया नहीं पड़ती। खाने-पीने का उनका जीवन समाप्त हो जाता है।
लेकिन मन के साथ संबंध जोड़नेवाला थोड़ा-सा सूक्ष्म होता है। पर वहीं रुक जाना उचित नहीं है, क्योंकि और भी सूक्ष्म होने का उपाय है। जो अपने को आत्मा से जोड़ लेता है, उसका काव्य काव्य ही नहीं रह जाता, भजन हो जाता है। उसका नृत्य नर्तकी का नृत्य नहीं रह जाता, मीरां का नृत्य हो जाता है। दोनों में बड़ा फर्क है। नर्तकी नाचती है–या तो देह से बंध कर नाचती होगी तो, तो बहुत कामुक होगा नृत्य; तब तुम्हारे भीतर वासना को जगाएगा। क्योंकि स्थूल की चोट स्थूल पर पड़ती है।
इसलिए पश्चिम में बहुत-से नृत्य पैदा हुए हैं–आधुनिक नृत्य–वे सिर्फ वासना को जगाते हैं; वे तुम्हारे भीतर पड़ी वासना को प्रज्वलित करते हैं; वासना में घी का काम करते हैं। कैबरे इत्यादि। होटलों में लोग नग्न स्त्रियों को नचा रहे हैं। उनकी वासना क्षीण हो गयी है; टूटी-फूटी हो गयी है। उसमें किसी तरह घी डालकर उसको फिर से उभारने की कोशिश चल रही है। नर्तकी चाहती है तो या तो उसका शरीर संबंध होगा; तो तुम्हारे भीतर वह वासना को जगाएगी। अगर शरीर से संबंध न हो उसका, अगर मन से संबंध हो, तो तुम्हारे भीतर संगीत को जगाएगी, काव्य को जगाएगी; तुम्हारे भीतर मन को आंदोलित करेगी। तुम थोड़ी देर के लिए शरीर की स्थूलता से मुक्त हो जाओगे और मन के आकाश में उड़ोगे। और अगर नर्तकी मीरां हो या चैतन्य, तो तुम थोड़ी देर के लिए परम आकाश में, महाकाश में प्रविष्ट हो जाओगे समाधि बरसेगी।
मीरां के नृत्य में आत्मा के साथ उसका संबंध है। तो थोड़ी देर को उसका नृत्य देखते-देखते तुम्हारा भी संबंध जुड़ जाएगा।
हम सत्संग से बड़े आंदोलित होते हैं। अपने मित्र बहुत सोच-समझकर चुनना। क्योंकि तुम्हारे मित्र अंततः तुम्हारे जीवन के निर्णायक हो जाते हैं। अगर नाच ही देखना हो तो मीरां को खोजना। अगर गीत ही सुनना हो तो किसी पलटू, दरिया, कबीर का सुनना। जब ऊंचा मिल सकता हो तो क्यों नीचे पकड़ते हो? जब गंगाजल मिल सकता हो तो तुम क्यों किसी गंदी नाली का जल पीते हो?
Everything starts with love, remember; love is the ultimate law. Then prayer, mercy, grace, follow of their own accord.
Friday, May 22, 2015
हम वही सुन पाते हैं, जो हम खोज रहे हैं।
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OSHO HINDI
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