Wednesday, May 20, 2015

ध्यान में कुछ अनिवार्य तत्व हैं

Master says
ध्यान में कुछ अनिवार्य तत्व हैं, विधि कोई भी हो, वे अनिवार्य तत्व हर विधि के लिए आवश्यक हैं। पहली है एक विश्रामपूर्ण अवस्था: मन के साथ कोई संघर्ष नहीं, मन पर कोई नियंत्रण नहीं; कोई एकाग्रता नहीं। दूसरा, जो भी चल रहा है उसे बिना किसी हस्तक्षेप के, बस शांत सजगता से देखो भर-शांत होकर, बिना किसी निर्णय और मूल्यांकन के, बस मन को देखते रहो।

ये तीन बातें हैं: विश्राम, साक्षित्व, अ-निर्णय-और धीरे-धीरे एक गहन मौन तुम पर उतर आता है। तुम्हारे भीतर की सारी हलचल समाप्त हो जाती है। तुम हो, लेकिन ‘मैं हूं’ का भाव नहीं है-बस एक शुद्ध आकाश है। ध्यान की एक सौ बारह विधियां हैं; मैं उन सभी विधियों पर बोला हूं। उनकी संरचना में भेद है, परंतु उनके आधार वही हैं: विश्राम,
साक्षित्व और एक निर्विवेचनापूर्ण दृष्टिकोण। खेलपूर्ण रहो लाखों लोग ध्यान से चूक जाते हैं क्योंकि ध्यान ने गलत अर्थ ले लिए हैं। ध्यान बहुत गंभीर लगता है, उदास लगता है, उसमें
कुछ चर्च वाली बात आ गई है; लगता है यह उन्हीं लोगों के लिए है जो या तो मर गए हैं या करीब-
करीब मर गए हैं-जो उदास हैं, गंभीर हैं, जिनके चेहरे लंबे हो गए हैं; जिन्होंने उत्साह, मस्ती, प्रफुल्लता, उत्सव सब खो दिया है।

धैर्य रखो जल्दबाजी मत करो। बहुत बार जल्दबाजी से ही देर
लग जाती है। जब तुम्हारी प्यास जगे, तो धैर्य से प्रतीक्षा करो जितनी गहन प्रतीक्षा होगी, उतने जल्दी ही वह आएगा। परिणाम मत खोजो अहंकार परिणामोन्मुख है, मन सदा परिणाम के लिए लालायित रहता है। मन का कर्म में कोई रस नहीं
होता, परिणाम में ही रस होता है-‘‘इससे मुझे क्या मिलेगा?’’ यदि कृत्य से गुजरे बिना ही मन
परिणाम पा सके, तो वह छोटे मार्ग का ही चुनाव करेगा। बेहोशी का भी सम्मान
करो जब होश में हो तो होश
का आनंद लो, और जब बेहोश हो तो बेहोशी का आनंद लो। कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि बेहोशी एक विश्राम की भांति है।
वरना होश एक तनाव हो जाता। यदि तुम चैबीस घंटे जागे रहो तो तुम कितने दिन, सोचते हो कि,
जीवित रहोगे?

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