धर्म के “धन्धे” का सबसे हास्यास्पद और विकृत रूप देखना है तो पितृ पक्ष श्राद्ध और इसके कर्म काण्डों को देखिये। इससे बढ़िया केस स्टडी दुनिया के किसी कोने में आपको नही मिलेगी। ऐसी भयानक रूप से मूर्खतापूर्ण और विरोधाभासी चीज सिर्फ विश्वगुरु के पास ही मिल सकती है। एक तरफ तो ये माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है, मतलब कि घर के बुजुर्ग मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे। दूसरी तरफ ये भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीर पूड़ी के लिए तडप रहे हैं।
अब सोचिये पुनर्जन्म अगर होता है तो अंतरिक्ष में लटकने के लिए वे उपलब्ध ही नहीं हैं। किसी स्कूल में नर्सरी में पढ़ रहे होंगे।
*अगर अन्तरिक्ष में लटकना सत्य है तो पुनर्जन्म गलत हुआ।*
*लेकिन हमारे पोंगा पंडित दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं इसलिए मरने के पहले अगले जन्म को सुधारने के नाम पर भी उस व्यक्ति से कर्मकाण्ड करवायेंगे और मरने के बाद उस के बच्चों को पितरों का डर दिखा कर उनसे भी खीर पूड़ी का इन्तजाम जारी रखेंगे।*
अब मजा ये है कि कोई कहने पूछने वाला भी नहीं कि महाराज इन दोनों बातों में कोई एक ही सत्य हो सकती है ... उस पर दावा ये कि ऐसा करने से सुख समृद्धि आयेगी।
लेकिन इतिहास गवाह है कि ये सब हजारों साल तक करने के बावजूद यह देश गरीब और गुलाम बना रहा है।
बावजूद इसके हर घर में हर परिवार में श्राद्ध का ढोंग बहुत गम्भीरता से निभाया जाता है, और वो भी पढ़े लिखे और शिक्षित परिवारों में। ये सच में एक चमत्कार है।
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