Tuesday, December 8, 2015

एक सूफी कहानी

एक सूफी फकीर के संबंध में मैंने
सूना है। उसके मरने के दिन करीब थे।
रहता तो एक छोटे झोंपड़े में था। लेकिन एक बड़ा खेत और
एक बड़ा बग़ीचा भक्तों ने उसके नाम कर रखा
था। मरने के कुछ दिन पहले उसने कि अब मैं मर जाऊँगा।
ऐसे तो जिंदा में भी इस बड़ी
जमीन की मुझे कोई जरूरत
नही थी। वह झोंपड़ा
काफी था, और मर कर तो मैं क्या करूंगा। मर
कर तो मुझे तुम इस झोंपड़े में दफ़ना देना। यह
काफी है। तो उसने एक तख्ती
लगवा दी पास के बग़ीचे पर
की जो भी व्यक्ति पूर्ण संतुष्ट
हो, उसको मैं यह बग़ीचा भेंट करना
चाहता हूं।
अनेक लोग आये;लेकिन खाली हाथ लोट गये।
खबर सम्राट तक पहुंची। एक दिन सम्राट
भी आया। और सम्राट ने सोचा कि औरों को लोटा
दिया, ठीक; मुझे क्या लौटायेगा। मुझे क्या
कमी है। मैं तो पूर्ण संतुष्ट हूं। सब जो
चाहिए वो है मेरे पास। मेरे संतोष में वह कोई खोट
नहीं निकाल पायेगा। सम्राट
भीतर गया। और फकीर से कहा
कि क्या ख्याल है मेरे विषय में। अनेक लोगों को लोटा चुके
हो। सब लोगों में संतोष की कमी
मिली। अब मेरे विषय में आपकी
क्या राय है। में चल कर आया हूं आपकी
शर्त सून कर।
तो उस फकीर ने कहा कि अगर तुम संतुष्ट
थे तो आए ही क्यो? तो उसके लिए है जो
आएगा ही नहीं; और मैं
उसके पास जाऊँगा। अभी वह
आदमी इस गांव में नहीं है।
वह यहां है ही नहीं।
वह क्यों आयेगा।
एक ऐसा संतोष का क्षण भीतर घटित होता
है। जब आपकी कोई अपनी
चाह नहीं होती। दौड़
नहीं होती। और आप अपने
साथ राज़ी होते है। उस क्षण में परमात्मा
आता है। आपको उसके द्वार पर मांगने
नही जाना पड़ता। उस दिन
उसकी मीठी वर्षा
आपके उपर होती है। वही
निर्वाण है।

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