Saturday, December 5, 2015

मैं तुम्हारे शास्त्र छीन लेना चाहता हूं, तुम्हारा ज्ञान छीन लेना चाहता हूं।

मैं तुम्हारे शास्त्र छीन लेना चाहता हूं, तुम्हारा ज्ञान छीन लेना चाहता हूं। 

तुम्हें निर्दोष छोटे बच्चे की भांति हो जाने की जरूरत है कि फिर अवाक और आश्चर्यचकित तुम तितलियों के पीछे दौड़ सको, कि फूल बटोर सको, कि सागरत्तट पर सीपियां इकट्ठी कर सको। 

छोटे बच्चों की भांति हो जाना है, कि घास की पत्ती पर सरकती हुई ओस की बूंद तुम्हें फिर मोती मालूम होने लगे! कि तुम्हारा मन यह न कहे, ज्ञानी मन यह न कहे कि यह क्या है, पानी की बूंद है। 

कि उड़ती तितली तुम्हारे चित्त को ऐसा आकर्षित कर ले, जैसे कोहिनूर! और तुम्हारा तथाकथित ज्ञान यह न कहे, इसमें क्या रखा है, तितली है। 

तुम्हें इस जीवन के रंगों में परमात्मा की पिचकारी का अनुभव होने लगे! यह होली खेली जा रही है! ये इतने रंग वृक्षों के, ये फूलों के, ये तितलियों के, इंद्रधनुषों के, यह सुबह—सांझ की भिन्न—भिन्न भाव—भंगिमाएं, यह एक उत्सव चल रहा है। 

इस उत्सव को तुम आश्चर्यचकित, विस्मय—विमुग्ध फिर से देख पाओ, तो सब हो जाए। ज्ञान जाने दो।

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