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बुद्ध कहते है कि जीवन है, जीवन की प्रक्रिया है, लेकिन भीतर कोई भी नहीं है जो जीवंत है। और फिर मृत्यु होती है। लेकिन कोई मरता नहीं है। बुद्ध के लिए तुम बंटे हुए नहीं हो। भाषा द्वौत निर्मित करती है। मैं बोल रहा हूं। ऐसा लगता है कि मैं कोई हूं जो बोल रहा है। लेकिन बुद्ध कहते है कि केवल बोलना हो रहा है। बोलने वाला कोई नहीं है। यह एक प्रक्रिया है। जो किसी से संबंधित नहीं है।
लेकिन हमारे लिए यह कठिन है। क्योंकि हमारा मन द्वैत में गहरा जमा हुआ है। हम जब भी किसी क्रिया की बात सोचते है तो हम भीतर किसी कर्ता के बारे में सोचते है। यही कारण है कि ध्यान के लिए कोई शांत, निष्क्रिय मुद्रा अच्छी है क्योंकि तब तुम खालीपन में अधिक सरलता से उतर सकते हो।
बुद्ध कहते है, ‘ध्यान करो मत, ध्यान में होओ।’
अंतर बड़ा है। मैं दोहराता हूं, बुद्ध कहते है, ध्यान करो मत, ध्यान में होओ।‘ क्योंकि यदि तुम ध्यान करते हो तो कर्ता बीच में आ गया। तुम यही सोचते रहोगे कि तुम ध्यान कर रहे हो। तब ध्यान एक कृत्य बन गया। बुद्ध कहते है, ध्यान में होओ। इसका अर्थ है पूरी तरह निष्क्रिय हो जाओ। कुछ भी मत करो। मत सोचो कि कहीं कोई कर्ता है।
ओशो
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