Saturday, December 19, 2015

मंत्र

मंत्र के, स्मरण के चार तल हैं। एक तल, जब तुम ओंठ का उपयोग करते हो, कहते हो राम। ओंठ का उपयोग किया तो यह शरीर से है–सबसे उथला तल, सबसे छिछला तल। पर यहां से शुरू करना पड़ता है, क्योंकि शुरुआत तो उथले से ही शुरू करनी होती है। फिर ओंठ तो बंद हैं और तुम भीतर कहते हो राम–सिर्फ मन में। यह पहले से थोड़ा से थोड़ा गहरा हुआ। लेकिन मन में भी कहते हो तो कहते तो हो ही, मन के यंत्र का उपयोग करते हो। पहले शरीर के यंत्र का उपयोग करते थे, अब मन के यंत्र का उपयोग करते हो। फिर तुम उसे भी छोड़ देते हो। तुम राम कहते नहीं; तुम राम को अपने-आप उठने देते हो, तुम नहीं कहते। शांत बैठ जाते हो। जिसने बहुत राम-राम जपा है, पहले ओंठ से जपा, फिर मन से जपा–वह अगर शांत बैठ जाए, जब भी शांत होगा तो अचानक पाएगा भीतर उसके कोई जप रहा है! राम, राम, राम! वह कह नहीं रहा। अपनी तरफ से कहने की अब कोई चेष्टा नहीं है। अब तो कोई जप रहा है, तुम सुननेवाले हो गए, कहनेवाले न रहे। यह तीसरा तल है। और एक चौथा तल है। जब राम पूरा फूल की तरह खिल जाता है, तो तुम्हारा समस्त यंत्र, जीवन-यंत्र, शरीर, तन-मन, सब इकट्ठा उसी धुन से गूंजने लगते हैं।

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