Saturday, September 22, 2012

अ-मन

मैं अपनी ही बात का विरोध क्यों करता हूं? मैं यहां कोई दर्शन नहीं पढ़ा रहा। दार्शनिक को बहुत संगत होना पड़ता है - दोषरहित,तर्कयुक्त,बुद्धिपरक, हमेशा बहस करने के लिये तत्पर और अपना तर्क सिद्ध करने के लिये। मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं। मैं तुम्हें कोई बंधे-बंधाये सिद्धांत नहीं देना चाहता जिनके साथ तुम चिपके रहो। मेरा पूरा प्रयास यह है कि तुम्हें अ-मन कर सकूं।

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