Life is nothing but an opportunity for love to blossom. If you are alive, the opportunity is there -- even to the last breath. You may have missed your whole life: just the last breath, the last moment on the earth, if you can be love, you have not missed anything -- because a single moment of love is equal to the whole eternity of love.
Everything starts with love, remember; love is the ultimate law. Then prayer, mercy, grace, follow of their own accord.
Monday, October 15, 2012
ओशो : एक संक्षिप्त परिचय
ओशो : एक संक्षिप्त परिचय
ओशो जन्मे नना के घर
मध्य प्रदेश,जिला रायसेन के
छोटे से गांव,कुच्वाडा में
११ दिसंबर १९३१ को.
ओशो जन्मे नना के घर
मध्य प्रदेश,जिला रायसेन के
छोटे से गांव,कुच्वाडा में
११ दिसंबर १९३१ को.
शिशु रोया नहीं जन्मने पर ,
इससे क्षण भर को माँ हुई चिंतित,
पर अगले ही क्षण , जब देखा शिशु को
ऊपर छत की ओर निहारते
और दोनों हाथ-पैर उछालते ,
तो हो गयीं निश्चिन्त;
हां, वे हो गयीं आश्वस्त
बच्चे को लेकर.
तीन दिनों बाद शिशु रोया ;
३७ वर्ष बाद ओशो ने किसी प्रसंग में बताया
कि पिछले जन्म में वे करते थे
एक २१ दिवसीय अनुष्ठान,
१८वेइन दिन हुआ था देह त्याग,
सो वह तीन दिन इस जन्म में किया पूरा ;
रोया भी और अब पिया माँ का दूध.
शिशु का नाम रखा गया रजनीश चंद्र मोहन ,
किन्तु प्यार में कहा जाता रहा राजा,
राजा ने जो चाहां
नानी ने करने दिया वही ,
जो कहावही उपलब्ध कराया ,
अगर राजा आग लगा दे कहीं
सह लेंगी उसका दण्ड,हो जो भी,
पर राजा को कहा न कभी कुछ भी
न कुछ करने से किया मना,
यह बहुत अद्भुत था!!
बहुत बड़ी बात थी!!
राजा ने शैशव में ही
सामने वाले बड़े ताल में
की खूब खूब तैराकी;
नना के घर था एक नौकर
परिवार के सदस्य जैसा ,
वह दिख्ताथा अँगरेज़ सा,
शायद इसी लिए नाम पद हो भूरा.
राजा सात साल के थे
जब नना हुए गंभीर अस्वस्थ,
उस गांव में न डाक्टर थे न पोस्ट ऑफिस,
न रेलवे ,न स्कूल,
न कुछ;
भूरा ने जोता बैलगाड़ी,
नानी के ऊपर किया पर्दा,
और व बैठीं नना व राजा को लेकर,
राजा को था नाना-नानी से बहुत प्यार
वह रास्ते भर पीड़ा अनुभव कर्ता रहा अपार ,
पर प्रगट न करता
कि नानी होंगी विचलित!
जब गाड़ी जा ही रही थी
उस छोटे से गांव से बड़े टाउन गाडरवारा कि ओर-
नना के उपचार हेतु,
मार्ग में ही नना का हुआ निधन!
नानी मगर रोयीं नहीं रंच भर
कि राजा परेशान न हो !!
गाड़ी में छाया महामौन
तब राजा ने कहा नानी से:
'कुछ बोलो ! इतनी चुप मत रहो!
यह असहनीय है!'
और नानी ने गाया वह गीत
जो उन्होंने उस समय गया था
जब उनको नना से प्रेम हुआ था!
भूरा को कुछ लगा असामान्य
झाँका पीछे पर्दा उठाकर ,
कहा नानी ने :
'सब ठीक है,
तुम गाड़ी बढ़ाये चलो!'
राजा को भरी संकट था
वह मौत का प्रथम साक्षात्कार था,
रख दिया था हिलाकर राजा की जड़ें...
वह नाना-नानी को कर्ता था बहुत प्यार ,
माँ से भी बढकर ,
वह मन ही मन रहा सोचता
अब कभी न मिलेंगे नना!
नानी रहेंगी अकेली!!
आखिर तय किया दोनों ने
'अब छोड़ देंगे कुच्वाडा'...क्रमशः
इससे क्षण भर को माँ हुई चिंतित,
पर अगले ही क्षण , जब देखा शिशु को
ऊपर छत की ओर निहारते
और दोनों हाथ-पैर उछालते ,
तो हो गयीं निश्चिन्त;
हां, वे हो गयीं आश्वस्त
बच्चे को लेकर.
तीन दिनों बाद शिशु रोया ;
३७ वर्ष बाद ओशो ने किसी प्रसंग में बताया
कि पिछले जन्म में वे करते थे
एक २१ दिवसीय अनुष्ठान,
१८वेइन दिन हुआ था देह त्याग,
सो वह तीन दिन इस जन्म में किया पूरा ;
रोया भी और अब पिया माँ का दूध.
शिशु का नाम रखा गया रजनीश चंद्र मोहन ,
किन्तु प्यार में कहा जाता रहा राजा,
राजा ने जो चाहां
नानी ने करने दिया वही ,
जो कहावही उपलब्ध कराया ,
अगर राजा आग लगा दे कहीं
सह लेंगी उसका दण्ड,हो जो भी,
पर राजा को कहा न कभी कुछ भी
न कुछ करने से किया मना,
यह बहुत अद्भुत था!!
बहुत बड़ी बात थी!!
राजा ने शैशव में ही
सामने वाले बड़े ताल में
की खूब खूब तैराकी;
नना के घर था एक नौकर
परिवार के सदस्य जैसा ,
वह दिख्ताथा अँगरेज़ सा,
शायद इसी लिए नाम पद हो भूरा.
राजा सात साल के थे
जब नना हुए गंभीर अस्वस्थ,
उस गांव में न डाक्टर थे न पोस्ट ऑफिस,
न रेलवे ,न स्कूल,
न कुछ;
भूरा ने जोता बैलगाड़ी,
नानी के ऊपर किया पर्दा,
और व बैठीं नना व राजा को लेकर,
राजा को था नाना-नानी से बहुत प्यार
वह रास्ते भर पीड़ा अनुभव कर्ता रहा अपार ,
पर प्रगट न करता
कि नानी होंगी विचलित!
जब गाड़ी जा ही रही थी
उस छोटे से गांव से बड़े टाउन गाडरवारा कि ओर-
नना के उपचार हेतु,
मार्ग में ही नना का हुआ निधन!
नानी मगर रोयीं नहीं रंच भर
कि राजा परेशान न हो !!
गाड़ी में छाया महामौन
तब राजा ने कहा नानी से:
'कुछ बोलो ! इतनी चुप मत रहो!
यह असहनीय है!'
और नानी ने गाया वह गीत
जो उन्होंने उस समय गया था
जब उनको नना से प्रेम हुआ था!
भूरा को कुछ लगा असामान्य
झाँका पीछे पर्दा उठाकर ,
कहा नानी ने :
'सब ठीक है,
तुम गाड़ी बढ़ाये चलो!'
राजा को भरी संकट था
वह मौत का प्रथम साक्षात्कार था,
रख दिया था हिलाकर राजा की जड़ें...
वह नाना-नानी को कर्ता था बहुत प्यार ,
माँ से भी बढकर ,
वह मन ही मन रहा सोचता
अब कभी न मिलेंगे नना!
नानी रहेंगी अकेली!!
आखिर तय किया दोनों ने
'अब छोड़ देंगे कुच्वाडा'...क्रमशः
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